भारत की उत्तर और दक्षिण मेहंदी शैली एक सुंदर और पारंपरिक कला है। यह हेना डिज़ाइन हाथ-पैर की त्वचा पर हल्दी, मेहंदी, और अन्य प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके लगाया जाता है।
मेहंदी इस कला का उत्पत्ति संस्कृति और परंपरा से हमेशा जुड़ी रहती है । और इसे विशेष अवसरों जैसे शादियों, त्योहारों, और महिला समारोहों में इसके प्रचलन की बढ़ावा देने के लिए लगाया जाता है।
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उत्तर और दक्षिण भारत की मेहंदी कला :-
मेहंदी कला के भौतिक और अभौतिक रूप को खूबसूरत ढंग से आभूषण के रूप बनाने का बेहतर प्रयास किया गया है ।
लड़किया और महिलाये अक्सर कुछ डिज़ाइनों को ही अपने त्वचा पर उतारती है जैसे गुलाब, पत्तियाँ, जालीदार मोती, और गजरा वाले डिज़ाइन इसमे शामिल हो सकते हैं।
इसमें धार्मिक पहलुओं को देखकर भी एक अच्छे और सुन्दर डिज़ाइन का निर्माण किया जाता है । जो शादी और अन्य उत्सवो की सौंदर्यता को बढ़ाता है।
उत्तर और दक्षिण भारतीय मेहंदी कला ने अपने विशिष्ठता और सुंदरता के कारण पूरे दुनिया में अपनी पहचान बना ली है और यह डिज़ाइन विदेशों में भी लोकप्रिय है।
इसकी श्रृंगार और सांस्कृतिक महत्वपूर्णता के कारण लोग इसे धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर अपनाते हैं। और अपने खुशियों को बढ़ाते है । तो आइये इसके दोनो प्रकारों को विस्तार से समझे :-
उत्तर भारत की मेहंदी शैली :-
उत्तर भारत की यह मेहंदी शैलियाँ विविधता और समृद्धि से भरी हुई हैं। माना जाता है, कि प्रत्येक राज्य अपने-अपने विशिष्टता और पहचानकारी डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर भारत की हेंना की शैली एक दूसरे से सम्बन्धित होती है ।
- पंजाब:
पंजाब की मेहंदी शैली विशेष रूप से वृहद और रंगीन होता है। इस डिज़ाइन की प्रमुखता यह है की इसमें फूल, पत्तियाँ, बूटियाँ और सिरों से भरी गहरी डिज़ाइन शामिल होती है। यह लोगों के हाथ और पैरों पर बने डिज़ाइन को देखकर गिद्धा, टमाटर, और मौजमस्ती का ख्याल आता है। - राजस्थान:
राजस्थान की मेहंदी शैली में सबसे प्राचीनतम और जाटिल जालीदार और भूतपूर्व रचनाएँ शामिल होती हैं। इसमें कई बारिकया का ध्यान रखा जाता है जैसे सीधी लाइनें और गोलाकार मोती डिज़ाइन शामिल होते है। जो देखने मे बड़े सुंदर और खुशनुमा लगता है । - हरियाणा:
हरियाणा की मेहंदी में गहरा रंग और सुंदर डिज़ाइन होते हैं। यहां की महिलाएं बड़े पैटर्न और ज्यादा मोटे डिज़ाइन का प्रयोग ज्यादा करती हैं, जिसमें बड़े पत्तों और फूलों का उपयोग किया गया होता है । जो इस डिज़ाइन की चमक धमक को दिखाता है । - उत्तरप्रदेश:
यहा की मेहंदी शैली में सुंदरता और संवेदनशीलता दोनो ही समाहित होती है। यहां के डिज़ाइन में पैसली, लट्ठे और बूँदें शामिल होती हैं। जो की उनके हेना के प्रति आकर्षकता को बतलाता है । साथ ही सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को दर्शाते हैं। - मध्यप्रदेश:
मध्यप्रदेश की मेहंदी शैली अधिकतम गोलाकार और आकारशास्त्रीय को शामिल किया जाता है। यहां के डिज़ाइन में विभिन्न गोले, किनारे और लाइनें होती हैं, जो हेना के संरचना की शैली को दिखाती है। यहा पर राजस्थान के बाद हेना उगाया जाता है ।
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दक्षिण भारत की मेहंदी शैली :-
- केरल:
केरल की यह मेहंदी की शैली रंगीन और भव्यता का प्रतिक माना जाता है, जिसमें विभिन्न प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके सुन्दर सुन्दर डिज़ाइन का निर्माण किया जाता है। इसमें प्राकृतिक वस्तु पल्लु, लट्ठे, और बड़े फूलों के डिज़ाइन को शामिल किया गया हैं, जो एक विशेष ग्रेसफुल छवि बनाने मे मदद करता है। - कर्नाटक:
कर्नाटक की मेहंदी में मुख्यत: यहा कला को रूपांतर किया जाता है । इसमे गोलाकार और सुंदर डिज़ाइन प्रयोग होता हैं। इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक आकृतिया शामिल होती है, जो वहा की स्थानीय विशेषताओं को प्रमोट करती है। - तमिलनाडु:
तमिलनाडु मे मेहंदी शैली में बहुत जगह मंदिर की ही शैली को रखकर डिज़ाइन बनाया जस्ता है । इसमे चिकनी और रचनात्मक डिज़ाइन शामिल होते हैं। यहां के डिज़ाइन में पुष्प, पत्तियाँ, और कार्यात्मक चित्र होते हैं, जो समृद्धि और सौंदर्य की कहानी बताते हैं। - आंध्रप्रदेश:
इस शैली के अंतर्गत विभिन्न वस्तुओ का समागम किया गया है । इसमें गुलाब, आभूषण, और कुंकुम के रंगों का विशेष उपयोग होता है। यह सभी के लिए विशेष हो जाता है । क्योकि इसमें रचनात्मक और नयापन होता है, जो इसे खास बनाता है। - महाराष्ट्र:
महाराष्ट्र की मेहंदी शैली को भारतीय अभिनेत्रियों के द्वारा उपयोग मे लाये हते है । इसमें विशेष रूप से चिकनी लाइनें और दृश्यात्मक डिज़ाइन शामिल होती हैं। यहां के डिज़ाइन में विभिन्न चित्र, पैटर्न, और लेख होते हैं, जो यहा के स्थानीय आदिवासी और सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा देते है ।
उत्तर और दक्षिण शैली के बींच मे अंतर :-
भारतीय संस्कृति मे मेहंदी कला के दक्षिण और उत्तर के बीच एक सांस्कृतिक और रंगीन बातचीत का अंतर होता है। दोनों ही क्षेत्रों में मेहंदी शैलियाँ अपनी विशेषता और श्रृंगार के डिज़ाइन में भिन्नता लाती हैं।
उत्तर भारत:
उत्तर भारत की मेहंदी डिज़ाइन की शैली बड़ी और भव्य होती है, जिसमें गाढ़े रंगों का विविध चित्रों मे उपयोग किया जाता है। यहां के डिज़ाइन में फूल, पत्तियाँ, और गोले आकृतियाँ को मिलाकर बेहतर डिज़ाइन बनाया जाता हैं,
जो की सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को दर्शाती हैं। उत्तरी भारत की महिलाएं बड़े और व्यापक डिज़ाइन को पसंद करती है । जिसमें जालीदार और चैन डिज़ाइन का स्थानों महत्वपूर्ण होता है।
दक्षिण भारत:
दक्षिण भारत की मेहंदी शैली अधिकतम सुंदर और लघु डिज़ाइन होती है। जिसमें संक्षेपित लाइनें, छित्रलेख और छोटे पैटर्न्स बने होते है।
यहां की महिलाएं गोले, चक्र और कंकण जैसे चयनित स्थानीय सिम्बोलों का उपयोग करते हैं । जिनसे शादी और समरसता की भावना को प्रतिष्ठा मिलता है।
भारत के दोनों ही क्षेत्रों में एक सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक हेना को माना जाता है, जो विभिन्नता और समृद्धि का समर्थन करती है।
यह सौंदर्य एवं कलाकृति के रूपांतरण के माध्यम से सांस्कृतिक के समृद्धि को प्रोत्साहित करता है । लोगो के द्वारा इसे एक साझा सांस्कृतिक का धरोहर माना गया है।
दोंनो क्षेत्र मे संस्कृतिक का प्रभाव :-
भारतीय हेना के कला ने उत्तर और दक्षिण भारत के दोनों क्षेत्रों में अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाई है। जो अपनी समृद्धि, रंगीनी और एकता का प्रतीक माना जाता है।
यह दोनों ही क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में अपनाया जाता है । लेकिन इसके समाज, धरोहर, और धार्मिकता पर एक अनोखा समानुपातिक प्रभाव पड़ता है।
उत्तर भारत में मेहंदी का सांस्कृतिक प्रभाव:
भारत के उत्तरीय क्षेत्र मे हेना के इस कला को बड़ी और भव्य मानी जाती है । जिसमें धार्मिक सिम्बोलिज्म और पौराणिक कथाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
इस डिज़ाइन जा प्रयोग लोगो के द्वारा शादियों और त्योहारों में महिलाएं हाथ और पैरों पर बनाकर करती है । जिसमें गुलाब, पत्तियाँ, और चंदन के चित्र शामिल होते हैं।
इसके साथ ही संगीत, रस्में और परंपरा भी मेहंदी कला को सांस्कृतिक महत्वता प्रदान करती हैं।
दक्षिण भारत में मेहंदी का सांस्कृतिक प्रभाव:
भारत के दक्षिणी क्षेत्र मे हेना कला के सुन्दर और अलग आयामो पर ध्यान दिया गया है । यहां की महिलाएं बड़े रूपों में गोले, चक्र, और लघु पैटर्न्स का उपयोग करती हैं।
जो उनके श्रृंगार और सुंदरता को बढ़ाते हैं। इसमें चंदन, कुंकुम और फूलों का उपयोग कर स्थानीय सांस्कृतिक की आकृतियों को बढ़ावा दिया जाता है।
सांस्कृतिक सामंजस्य और समृद्धि:
भारतीय सांस्कृति मे हेना के कला का प्रभाव दोनों ही क्षेत्रों में सामंजस्यपूर्ण और एक समान पड़ा है। इसका प्रभाव विभिन्न रंगों, पैटर्न्स और आकृति के माध्यम से दिखाई देता है ।
जो हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाते हैं। इसके अंतर्गत दोनो संस्कृति का आदान प्रदान भी संभव हो जाता है । जिसे लोग सौंदर्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
यह एक सांस्कृतिक संबंध का सशक्त और सुंदर प्रतीक है जो दोनों ही क्षेत्रों में समृद्धि और एकता को बढ़ावा देता है।
मेहंदी डिज़ाइन के विविध पहलु :-
हेना एक सांस्कृतिक कला है जो भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका अध्ययन करने से हमें इस कला की विविधता और उसके प्रमुखता का सुझाव मिलता है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
अगर हम इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करे तो यह बहुत गहरी और विविध होती है और इसका उपयोग विभिन्न समयों और स्थानों पर आवश्यकतानुसार किया जाता है। इसी हेना का प्राचीन समय मे उपयोग सामाजिक और धार्मिक रूपों में किया जाता था । जिससे की यह हमारे भारतीय सांस्कृतिक का हिस्सा बन पाया है। - धार्मिक संबंध:
हेना को जानने के इस अभ्यास मे हमने उसके धार्मिक समारोहों और त्योहारों के उपयोगिता को बताना ही भूल गये । यह सभी डिज़ाइन का प्रत्यक्ष सम्बन्ध समाज और उनमे रहने वाले लोगो पर पड़ता है । इस डिज़ाइनों का विभिन्न धार्मिक अनुस्थानों में शादियों और त्योहारों में एक अपना ही महत्व है । - रूपांतरण कला :
हेना की यह विशेषता भी बड़ा अनोखा है । इसमे विभिन्न हेना के बींच मे रूप का अंतर निकाला जाता है । इसमे इस कला में रूपांतरण योजना एक महत्वपूर्ण पहलु होता हैं। और इसके अंतर्गत अनेक रंग, फूल, पत्तियाँ, और रूपांतरण से भरा डिज़ाइन को रखा गया है, जो सौंदर्य और आलौकिकता का मिलावट रूप देता है। - चरित्रिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण :
हेना के इस कला को अक्सर हम एक साधारण रूप देखते है । परन्तु हम इसके विख्याति रूप से हम भली भती परिचित नहीं है । इसका बाज़ार मे फैलाव बहुत ही अधिक है । जिसको पढ़ने पर पता चलता है की इसकी चरित्रिक और धार्मिक महत्व को समाज को जरूरत है । यह अपने कथाएं, धरोहर और सांस्कृतिक सिम्बोलिज्म के लिये प्रसिद्ध है । - विशेषता और विविधता:
हेना के इस प्रचलित कला अपनी विशेषता और विविधता के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। दक्षिण और उत्तर भारत में भिन्न-भिन्न शैलियों में इसका नवीन स्वरूप देखा जा सकता है, जो की भारत की विविध संस्कृति को दिखलाता है ।